मेरी इस रचना की अजीब बात सिर्फ ये है कि इसे लिखा तो गजल के अन्दाज में है पर इसमें मैने हिन्दी शब्दों का भी बहुतायत में प्रयोग किया है जो इस रचना के लालित्य को और भी बढा देते हैं।।
दावा है हमारा कि हर पढने वाला एक बार अपने हृदय पर हांथ जरूर रखेगा या फिर ठन्डी आह जरूर लेगा।।
तो पढिये और ''आनन्द'' की इस रचना का आनन्द लीजिये।।
उन्हे रीता हुआ दामन पसन्द नहीं आता
हमें खुशियों भरा जीवन पसन्द नहीं आता।।
जरा धीरे से सिसक ऐ मेरे टूटे हुए दिल
उन्हे दिल का करुण क्रन्दन पसन्द नहीं आता ।।
चूडियों की खनक बेशक लुभाती है उनको
जाने क्यूं हांथ का कंगन पसन्द नहीं आता ।।
हर तरह से उन्हें हक चाहिये हम पर लेकिन
हमारे प्यार का बंधन पसन्द नहीं आता ।।
उन्हें हर रंग से यारों बडी मोहब्बत है
हमें पर साथियों फागुन पसन्द नहीं आता ।।
जला देना हमें मरने के बाद गूलर से
न जाने क्यूं उन्हें चंदन पसन्द नहीं आता ।।
खिजा में जीने की अब हो गर्इ है आदत सी
हमें आबाद अब गुलशन पसन्द नहीं आता ।।
चले जाएंगे तनही ही हम अपनी मंजिल तक
हमारा साथ है उलझन, पसन्द नहीं आता ।।
हारकर फिरसे लिखने लग गया ''आनन्द'' गजल
उन्हे नीरस मेरा गायन पसन्द नहीं आता ।।
चन्द्रमा पर जल की खोज सर्वप्रथम भारतीय खगोलशास्त्री वाराहमिहिर नें की थी।।
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bahut khub
जवाब देंहटाएंग़ज़ल रुपी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी....
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुती के लिए आपका धन्यवाद /
जवाब देंहटाएंवास्तव में आपने हृदय पर हाँथ रखने पर मजबूर कर दिया
जवाब देंहटाएंजरा धीरे से सिसक ऐ मेरे टूटे हुए दिल
उन्हे दिल का करुण क्रन्दन पसन्द नहीं आता ।।
उम्दा काम
कलम के धनी है आप यू हीं लिखते रहिये
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