आज की गंदी राजनीति में फंस कर बेहाल हुए देश की दशा का वर्णन बडे ही मार्मिक ढंग से कवि आर्त ने अपनी इन पंक्तियों में किया है ।
प्रस्तुत पंक्तियां महाकवि अनिरूद्धमुनि पाण्डेय 'आर्त' कृत हनुमच्चरितमंजरी महाकाव्य से ली गयी हैं ।
कहां वो सुराज्य जहां श्वान को भी मिले न्याय
आज न्याय-देवि बिके धनिकों के हॉंथ हैं ।
मन्द पडी धर्म, सत्य, नीति की परम्परायें
कर रहे ठिठोली तप-साधना के साथ हैं ।
परशीलहारी दुराचारिये निशंक घूमें
किन्तु पतिरखवारे ठाढे नतमाथ हैं ।
चाह महाकाल की कि चाल कलिकाल की
अचम्भा, हाय! कौन सोच मौन विश्वनाथ हैं ।।
सत्य अनुरागी हैं उटज में अभावग्रस्त
किन्तु दूर से ही दिखें कोठियां दलाल की ।
चोरी, घूसखोरी, बरजोरी में ही बरकत है
कोई ब्यर्थ क्यूं करे पढाई बीस साल की ।
पौंडी-पौंडी उठने का कौन इन्तजार करे
वंचकों को चाहिये उठान तत्काल की ।
दूर से दमकता दुशाला दगाबाजियों का
'आर्त' है फटी लंगोटी भारती के लाल की ।।
राजनीति की पुनीत वीथि आज पंकिल है
क्षुद्र स्वार्थ-साधना में लीन ये जहान है ।
धूर्त, नीच, लम्पट, सदैव जो अनीतिरत
लोक-धारणा मे वही बन रहा महान है ।
झूठ, चाटुकारी, पक्षपात का है बोलबाला
जितना पिचाली, उतना ही वो सयान है ।
'आर्त' रे अभागे! हरि सों न अनुरागे
मिथ्या दम्भ वश त्यागे सद्ग्रन्थन को ज्ञान है ।।
मानस के राजहंस काक, बक, बृकों मध्य
सहें अपमान , रहें आहत हो मौन है ।
गणिका पढाती पाठ सतियों, सावित्रियों को
कपिला को व्यंग्य कसें सूकरी कै छौन हैं ।
देव-संस्कृति के पुजारी मधुशाला चले
मन्दिरों को मुंह चिढाते जालिमों के भौन हैं ।
'आर्त' विलखात हाय! क्या है विधिना की चाह
ऐसी दुर्दशा के जिम्मेदार कौन कौन हैं ।।
।। कवि अनिरूद्धमुनि पाण्डेय 'आर्त' कृत ''हनुमच्चरितमंजरी महाकाव्य'' से साभार स्वीकृत ।।
"आज की गंदी राजनीति में फंस कर बेहाल हुए देश की दशा का वर्णन बडे ही मार्मिक ढंग से कवि आर्त ने अपनी इन पंक्तियों में किया है"
ردحذفबिल्कुल सही बात है जी ये....!
कुंवर जी,
साधारण शब्दों में बहुत अच्छी जानकारी
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