ये श्रद्धांजलि उनको समर्पित है जो यूँ तो हमारी कुछ न थीं, एक पडोसी के सिवा; पर वो हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग थीं
कल सुबह एक दुर्घटना में उनका देहांत हो गया
मै मामा जी के यहाँ था
मुझे ये सूचना मेरी माँ ने फ़ोन पर रोते हुए सुनाया
तब से मन बड़ा व्यग्र है
उनका चेहरा रह रह कर आँखों में आ जाता है
लगता है जैसे अभी वो घर से बाहर निकलेंगी और कहेंगी
बेटा कब आये मामा जी के यहाँ से ?
तुम्हारी तबियत अब कैसी है?
पर अगले ही छड़ ध्यान आता है की वो अब इस असार संसार में नहीं हैं
और मन चीत्कार कर उठता है
उनके इस तरह से असमय में चले जाने का खेद सिर्फ मेरे ही परिवार में नहीं बल्कि पूरे मोहल्ले में है
हो भी क्यूँ न
वो थीं ही इतनी अच्छी की उनकी जगह कोई नहीं ले सकता
आज ऊपर वाले के न्याय पर बहुत गुस्सा आ रहा  है
वो हमेशा अच्छों को ही क्यूँ अपने पास बुलाता है
क्या दुनिया सिर्फ बुरे लोगों के लिए ही है ?
पर इश्वर के आगे किसकी चलती है

यहाँ मै उनकी श्रद्धांजलि में खुद की ही एक कविता-सुमन  अर्पित कर रहा हूँ

कैसा  अजब जहाँ है, कैसे नियम यहाँ हैं
पर हितव्रती महानर, दुःख द्वंदों में जकड़ा है

जग की है जो जरूरत, करुणा दया की मूरत
परहित है जो निछावर वो आज चित पड़ा है

कैसी विडंबना है, महिभार जो बना है
जो है अघी निशाचर मद में अकड़ रहा है

भगवान तुम कहाँ हो, दर्शन तो दो जहाँ हो
खल नर संहारो हे हरि, जिसका भरा घड़ा है

हे नाथ दयासागर कर दो कृपा करूणाकर
नारायण फिर बनो नर, किंकर शरण पड़ा है

AUNT WE मिस यू VERY MUCH

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