शताब्दियों से सम्पूर्ण विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाला भारत आधुनिक आविष्कारों की लिस्ट में कदाचित अपना अस्तित्व भर बनाए हुए है
प्राचीन काल में जहाँ हमने इतने सारे संसाधनों का विकास किया वहीँ आधुनिक काल में हमारे आविष्कारों की संख्या मंद पड़ गयी
ऐसा क्यूँ?
क्या हमारी बुद्धि में वो पैनापन नहीं रहा
या हमारे विद्वानों ने मष्तिस्क का प्रयोग बंद कर दिया
या फिर हममे अब वो छमता नहीं रही
आइये कुछ तथ्यों पर गौर करें
ज़रा इतिहास की ऊँगली पकड़ कर अतीत की सैर करते हैं
विश्व का आदि ग्रन्थ वेद जिनमे देवताओं से लेकर पेड़- पौधों, आदि तक की वंदना की गई है
क्यूँ? क्या आवश्यकता थी इसकी?
क्यूंकि हमारे मनीषियों को यह पता था की वृक्ष भी जीवन धारण करते हैं
उनमे भी अनुभव करने की छमता होती है
एक उदाहरण देता हूँ- संस्कृत कोष में वृक्ष के लिए पादप शब्द का प्रयोग हुआ है
पादप की व्युत्पत्ति पादेन पिबति इति पादपः अर्थात जो पैरों से पीता है वो पादप
पीने का काम तो वाही कर सकता है जिसमे जीवन हो
आगे बढ़ते हैं
रामायण विश्व का आदि काव्य है
रामायण में सरयू को पार करने के लिए नौका का प्रयोग किया गया है जो आज की नौकाओ व समुद्री जहाज़ों का पूर्वज है
राम रावण युद्ध में विभिन्न अस्त्रों का प्रयोग है
मुख्यतः आग्नेयास्त्र, वरुनास्त्र, पाशुपतास्त्र, सर्पास्त्र, ब्रह्मास्त्र आदि हैं
ये अस्त्र आजके बंदूकों, मशीनगनों, तोपों, विषैली गैसों तथा परमाणु अस्त्रों के पूर्वज हैं
आयुर्वेद का प्रयोग भारत की देन है ये तो जग जाहिर है
अब बात आती है वायुयान की तो पुष्पक विमान को वायुयानों का पूर्वज कहना चाहिए
इन सब बातों से मै सिर्फ ये कहना चाहता हूँ की जो आविष्कार आधुनिक काल में हुए हैं उनकी नीव हमारे देश में ही पड़ी
अब सवाल ये रहा की इतनी आधुनिक एवं वैज्ञानिक सोच के बाद भी आधुनिक आविष्कारों में हमारा योगदान कम क्यूँ है?
जरा गौर फरमाइए
१६०० ईसवी के पहले गोरों के हाथ कितने आविष्कारों की उपलब्धियां हैं
शायद एक-दो या फिर वो भी नहीं
अमेरिका की तो बात ही छोड़ दीजिये, उसका तो इतिहास ही हद हद ढाई तीन सौ वर्षों पुराना है
मतलब ये हुआ की जब गोरे भारत आये अधिकतर आविष्कार उसके बाद ही हुए
दूसरी बात
गणित का बहु प्रसिद्द सूत्र जिसे हम आज भी पैथागोरस प्रमेय के नाम से जानते हैं, हमारे ही महर्षि बौधायन द्वारा ६ठीं शताब्दी के पहले ही प्रतिपादित किया गया था जिसे पैथागोरस ने चुरा कर बाद में अपने नाम से कर लिया
तीसरा तथ्य
न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत हमारे महान गणितज्ञ आर्यभट ने अपने आर्यभटीयम नामक ग्रन्थ में पहले ही प्रतिपादित किया था जो न्यूटन ने बाद में चुरा कर अपने नाम से प्रकाशित किया
बीज गणित में पाई का मान सबसे पहले आर्यभट ने प्रतिपादित किया
शून्य ओर दशमलव की खोज भी आर्यभट ने ही की
सूर्य से पृथ्वी की दूरी ओर सूर्य का अपने स्थान पर लगातार परिक्रमण भी सबसे पहले आर्यभट ने बताया
ऐसी ही ओर बहुत सी बातें हैं जिन्हें हम आज भी विदेशियों द्वारा प्रतिपादित मानते हैं पर वस्तुतः वो हमारे भारत ने दिया है
अब ये सोचते हैं की इतनी उदात्त सोच ओर इतना ज्ञान रखने पर भी हमारे नाम इतने कम आविष्कार क्यूँ
ध्यान दीजियेगा
१६ वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत आये ओर अपनी कुनीतियों से १७०० शताब्दी के उत्तरार्ध तक भारत पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया
ओर फिर शुरू हुआ वहशियत का नंगा नाच
अंग्रेज भारतीयों को देखना भी पसंद नहीं करते थे
साड़ी बड़ी पोस्ट्स पर अंग्रेज होते थे ओर घटिया जगह पर भारतीय
भारतीयों को ठीक से साँस लेने तक की आजादी नहीं थी ओर उनके हर कार्य पर अंग्रेजों की नजर रहती थी
अब अगर उस समय भारतीयों ने कोई आविष्कार किये भी हों तो उनपर उनका अधिकार होने ही नहीं पता रहा होगा ये तो स्वयं सिद्ध है
ओर उस आविष्कार के साक्षी भारतीय अगले ५० वर्षों में ख़तम हो गए होंगे
उन्होंने जो ऐतिहासिक किताबें लिखी होंगी , अन्य किताबों की भांति उन्हें भी जला या फाड़ दिया गया होगा
तो हमने आविष्कार किये थे या नहीं इसका प्रमाण तो रहा नहीं फिर हम कैसे मान लें की हमने आविष्कार नहीं किये
मै तो कहता हूँ जिस तरह हमारे इतिहास को तोडा मरोड़ा गया उसी तरह हमारे किये हुए आविष्कारों पर दूसरों की मुहर भी लगाईं गयी वरना इतिहास गवाह है, भारतीयों से तीव्र मेधा न कहीं थी न हो सकेगी
ओर वर्तमान इस बात का प्रमाण है
आज भी हमारे कितने ही भारतीय वैज्ञानिक अमेरिका, इंग्लॅण्ड आदि देशों में वहां के लोगों के अंडर में काम करते हैं
ओर उसका लाभ उन विदेशियों को मिल जाता है
इस तरह हमारे इसतिहास के साथ हमेशा से ही खिलवाड़ होता रहा और हर बार या तो डर वश या फिर अज्ञान वश हम अपने ही अधिकारों से वंचित हो रहे हैं
इन समस्याओं का निदान तभी हो सकता है जब हम अपने घर के विद्वानों का आदर करें और उन्हें आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराएं
भारतीयों की उन्नति में ही भारत की उन्नति है
इस लेख में दिए गए वैज्ञानिक तथ्यों के बारे में और विस्तार से जानने के लिए .. आर्यभटीयम, और संस्कृत भारती द्वारा प्रकाशित - संस्कृत में विज्ञानं (डॉक्टर विद्याधर शर्मा गुलेरी) ग्रन्थ देखें
तथा किसी भी अन्य जिज्ञासा के लिए संस्कृत भारती की वेब साईट http://www.samskritabharati.org/ पर संपर्क करें
सिर्फ गुलामी, पहले मुगलों की, फिर अंग्रेजों की और बाद में अब काले अंग्रेजों की..
ردحذفhamare puravaj to bas musalmano ko apna bhai banane main hi lage rahe.
ردحذفऔर आज कोई रिसर्च होता भी है .. तो उसे पहचान दिलाने के लिए दर दर की ठोकरें खानी होंती है .. जो प्रतिभा मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करके हर स्थान पर अपने झंडे गाडा करती है .. वही प्रतिभा सरकारी नौकरियों में उतना काम क्यूं नहीं करती .. क्यूंकि हर स्थान पर राजनीति जो चलती है !!
ردحذفआधारभूत प्रोत्साहन और संसाधनों की कमी इसका कारण है.
ردحذفआपकी बात सही है परंतु यह ज़रूरी नहीं है कि पाइथागोरस ने चोरी ही की हो। एक ही विचार अनेकों लोगों के द्वारा अलग-अलग देश-काल मैं प्रतिपादित किया जा सकता है। एकम सत...
ردحذفआपकी बात सही है परंतु पाइथागोरस ने चोरी ही की हो यह ज़रूरी नहीं है एक ही तथ्य भिन्न देश-काल में अलग-अलग लोगों द्वारा स्वतंत्र रूप से भी प्रतिपादित किया जा सकता है।
ردحذفपादप शब्द की व्याख्या का धन्यवाद। इसी प्रकार शस्य से वनस्पति में जीवन का पता लगता है। हमारा अतीत सचमुच गौरव्पूर्ण रहा है फिर हम अन्धों के रास्ते पर चलकर गड्ढे में क्यों गिरें?
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