यूं ही ब्लाग्स को टटोलते हुए आज मै एक बडे ही प्यार ब्लाग पर पहुंच गया जहां श्रीमद्भगवद्गीता के विषय में एक लेख लिखा हुआ था । पढकर बहुत ही अच्छा लगा । पर उसी ब्लाग पर मैंने एक पोस्ट और देखी जो सोमलता विषय पर थी । वहां सोम को एक फंफूद या मशरूम बताया गया है । हालांकि इस पोस्ट में लेखक का कोई दुराग्रह नहीं दिखा , पोस्ट के लेखक ने कुछ वैज्ञानिकों द्वारा दिये गये तथ्यों को ही उद्धृत किया है । यहां मैं उस पोस्ट की लिंक दे रहा हूं , आप स्वयं इसे पढ सकते हैं कहीं यही तो सोम नहीं इस पोस्ट को पढकर आप भी उन प्रमत्त वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये उल्टे-सीधे तर्क पढ सकते हैं ।
उनमें से कुछ को मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं ।।
- डॉ0 वाट ने कोंकण, कर्नाटक, सिंहभूम, रांची, पुरी और बंगाल में मिलने वाले तथा आरोही (ट्रेलिंग या ट्वाइनिंग) झाडी के रूप में फैलने वाले 'सारकोटेस्टेम्मा एसिडम' (रौक्स) वोगृ (मदारकुल) को सोम बतलाया है ।
- कुछ विद्वानों ने पेरिप्लोका एफाइल्लाडेकने मदारकुल को सोम माना है । पंजाब में इसका नाम 'तरी' तथा बंबई में 'बुराये' है । यह पजाब के मैदानों में झेलम से पश्चिम की ओर तथा हिमालय के निचले भाग में बिलोचिस्तान तक पाया जाता है । इसके दूधिया रस का प्रयोग सूजन व फोडे पर किया जाता है ।
- डॉ0 उस्मान अली तथा नारायण स्वामी ने 'सिरोपिजिया जाति (मदारकुल) को सोम का प्रतिनिधि कहा है । केरल में इसका प्रचलन भी 'सोम' नाम से है ।
- पेशावर विश्वविद्यालय के वनस्पतिशास्त्री एन0 ए0 काजिल्वास के अनुसार 'एफेड्रा पैकिक्लाडा बौस (ग्नेटेसी)' तथा इसकी एक अन्य जाति सोम है जो हिन्दुकुश पर्वत, सफेद कोह तथा सुलेमान रेंज में प्राप्त होती है ।
- डॉ0 मायर्स ने 'एफेड्रा गिरार्डियाना' को सोम माना है ।
- डॉ0 आर0 एन0 चोपडा ने सोम की पहचान गिलोय एवं 'रूटा ग्रविलोलेसं' से की है ।
- कहा जाता है कि चीन में प्रयुक्त होने वाली 'गिनसेगं' नामक वनौषधि (पैनेक्स शेनशुगं अरालिऐसीकुल ) में भी सोम के सदृश कुछ गुण हैं ।
- सुप्रसिद्ध अमेरिकी अभिकवकशास्त्री रिचर्ड गार्डन वैसन ने अपने 15 वर्ष के अनुसन्धान के पश्चात् 'फ्लाई आगेरिक' नामक कुकुरमुत्ते की जाति के 'अमानिता मस्कारिया' से सोम की पहचान की है । यह कवक (फंफूद) अफगानिस्तान, एशिया के समशीतोष्णवनीय भाग तथा उत्तरी साइबेरिया में भोज् वृक्ष (बर्च) तथा चीड के चपसें में मिलता है । इसका सेवन उन्मादक रूप में होता है । कवक के टुकडे या रस के प्रयोग से शारीरिक शक्ति
बढ जाती है, दिवास्वप्न दिखाई देने लगते हैं । इसमें मस्केरीन, एट्रोपीन, स्कोपोलेमीन, हाइयो सायेमीन आदि एल्कलायड् पाए जाते हें। सन् 1971 में , मैनबरा (आस्ट्रेलिया) में हुए प्राच्यवेत्ताओं के अनतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में जब डॉ0 वैसन ने सोम को उपयुक्त मतिविभ्रमकारी फफूद बतलाया तो डॉ0 एस0 भट्टाचार्य ने उसका वहीं सतर्क खण्डन किया ।
उपरोक्त सोमविषयक भ्रान्तियों के विषय में खण्डन मण्डन की परम्परा प्राचीन रही है किन्तु आजतक पूर्णरूपेण सोमलता की पहचान नहीं की जा सकी है । जितने भी वैज्ञानिकों ने सोम की पहचान की वो केवल अपनी प्रशिद्धि के लिये ही बिना सारे तथ्यों का आकलन किये ही किसी भी तत्साम्य रखने वाले पौधे को सोम की संज्ञा दे दी । खेद तो इस बात का है कि हमारे भारतीय विद्वान भी इसी रंग में रंग कर भ्रामक तथ्यों का ही सम्पादन करते रहे पर किसी ने ठीक से सोम के सारे लक्षणों को चरितार्थ नहीं पाया ।
ऋग्वेदीय वर्णन के अनुसार सोम पौधा उंचे और मजबूत पर्वतों पर उत्पन्न होता था । सोम स्फूर्ति प्रदान करता था। सोम एक लता थी फंफूद या मशरूम नहीं ।
जो लोग सोम का अर्थ शराब लगाते हैं वो सोम तथा सुरा में अन्तर तक समझते हैं । उन्हें अनार के ताजे रस तथा सडाये हुए महुए के रस में फर्क करना नहीं आता ।
आज के इस लेख में केवल इतना ही , लेख का विस्तार पाठकों को बोर न कर दे इसलिये सोम विषयक अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों का उद्घाटन अगले लेख में किया जाएगा ।
पाठकों की राय व सोमविषयक अन्य ज्ञानविन्दुओं का स्वागत है । कृपया अपने सुझाव हमें ईमेल से भेजें ।।
वैदिक धर्म की जय ।।
achi jaankari
ردحذفlekha passand aaya..
ردحذفmogembo khush huaa...
आपसे इसी प्रकार कि भ्रम-नाशक और ज्ञान-वर्धक जानकारियों कि कामना है.
ردحذفधन्यवाद् इस पोस्ट के लिए
ऐसे जानकारीपूर्ण लेखों का स्वागत है - अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
ردحذفअच्छी रोचक जानकारी से भरी पोस्ट / हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
ردحذفअच्छा और सार्थक लिखा है आपने ! अथर्ववेद में जब मैंने पढ़ा ,"मधुमयी मैं तुम्हे खोदता हूँ " और "तुमे वाराह ने खोदा " तो मैं भी इसी निष्कर्ष की और झुक गया की हो न हो कोई मशरूम ही सोम है ! क्योकि मशरूम की कई प्रजातियों को जमीन के भीतर से खोद कर निकाला जाता है !
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