प्रेम मगन मन भजन करे राम हरे श्री कृष्ण हरे ।
मानवता का भाव जगा उर धन दौलत में शान्ति कहां
श्रम सींकर के मोल मिले जो उतने में आनन्द मना
किसके लिये भंडार भरे, राम हरे श्री कृष्ण हरे ।।
पानी का बुलबुला ये जीवन कब फुट जाये कौन कहे
कहीं बुढापा कहीं ब्याधि से संतत पीडित जीव रहे
जग में कितने कष्ट भरे राम हरे श्री कृष्ण हरे ।।
काल बली का एक तमाचा माया हाट छुडायेगा
जिस तन पर फूला है इक दिन माटी में मिल जायेगा
क्यों बल का अभिमान करे राम हरे श्री कृष्ण हरे ।।
पाप, कपट, छल, अनाचार में जनम अमोलक खोय रहा
नारायण को भूल के मूरख पाप की गठरी ढोय रहा
परमेश्वर से क्यूं न डरे राम हरे श्री कृष्ण हरे ।।
कौन यहां पर तेरा मेरा जग दो दिन का मेला है
झूठे जग के रिस्ते नाते जाता जीव अकेला है
इस पर 'आर्त' विचार करे राम हरे श्री कृष्ण हरे ।।
महाकवि 'आर्त' कृत नीराजन भजन संग्रह से साभार गृहीत ।।
कौन यहां पर तेरा मेरा जग दो दिन का मेला है
ردحذفझूठे जग के रिस्ते नाते जाता जीव अकेला है
इस पर 'आर्त' विचार करे राम हरे श्री कृष्ण हरे ।।
....Sarthak bhaktimay prasuti ke liye dhanyavaad.....
खूबसूरत शब्दो के संयोजन के साथ उम्दा रचना , बधाई ।
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