भइया सावन का महीना चल रहा है और अगर आप देहात से सम्बन्धित हैं तो आपको पता ही होगा कि इस समय लोकगीतों में सबसे ज्यादा कजली गाई जाती है ।
अजीब बात ये है कि अगर आप इसके अभ्यासी हैं तो जैसे ही बरसात की बूँदें गिरनी शुरू होंगी वैसे ही आपको कजली गाने या सुनने का मन होने लगेगा ।
आज ठीक यही बात मेरे साथ हुई । आज जब पानी बरसने लगा तो मुझे भी कजली सुनने का बडा मन होने लगा । उस समय मैं अपने मामा जी के घर पर था और मेरी मामी जी बहुत ही सुन्दर गाती हैं , सो हमने तो आज का भरपूर मजा उठाया । सोचा कि क्यूँ न आपको भी ये मजा आस्वादन कराया जाए ।
कवि 'आर्त' कृत कजली प्रस्तुत कर रहा हूँ, धुन आप अपने मन में ही बजा लीजियेगा ।
हरे रामा चले ललकि कपि वीर लंक ललकारी रे हारी
मुखहि मेलि मुद्रिका मुदित मन मारूति मंगलकारी रामा
हरे रामा पहुँचे पयोनिधि पार प्रबल प्रणधारी रे हारी ।।
चढि कंगूर वीथिन वन खोजत विकल वज्र वपुधारी रामा
हरे रामा भेंटि विभीषण भक्त भयो सुख भारी रे हारी ।।
सुनि संकेत सकेलि खोजि सिय संकुल सुख संचारी रामा
हरे रामा निरखि निपट नि:शंक नवहि निसिचारी रे हारी ।।
सुत संग सिय सनमानि 'आर्त' दु:ख टारी रे हारी
क्षमा कीजियेगा , एक पंक्ति याद नहीं आ रही है, बाद में लिख दूँगा ।
गुरूजी अपने एक गृह कार्य ना करने वाले नालायक शिष्य का प्रणाम स्वीकार करें. हमेशा कि तरह से इस लेख को भी मैंने अपने कम्पुटर पर सुरक्षित कर लिया है.
ردحذفहाँ अगर मामीजी कि मधुर आवाज में ये कजरी सुनने को मिले तो ऐसा लगेगा कि आप स्वयं आ गए हो.
ردحذفविचार शून्य जी आप प्रतिदिन का पाठ पढते हैं यही बहुत है ।
ردحذفबस एक निवेदन है , भले ही आप गृहकार्य न करें पर प्रतिदिन के पाठ का एक बार अभ्यास अवश्य कर लिया करें ।
और अगली बार जब मामा जी के घर जाउँगा तो मामी जी की आवाज में एक कजली रेकार्ड कर लूँगा ।
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