मन में उमंग साहस अदम्‍य, जिनके ललाट चमकें चम-चम
फिर पथ कितना भी हो दुर्गम पर, उनको गम की बात ही क्‍या ।।

उँचे पहाड, गहरा सागर, या हो कांटों से भरी डगर
वो करें पार हर विपति मार, बढते जाते निज मंजिल पर ।।
जिसका संकल्‍प कर्म पथ, मानवता हो जिनका मूल धर्म
परसेवा का जो रखों नियम, फिर उनको गम की बात ही क्‍या ।।1।।

जो धैर्यवान हों धरा सदृश, मति हो आकाश सदृश विस्‍तृत
जो देव सदृश हों कर्मशील, फिर भी हो जिनका निर्मल चित ।।
जो सूर्य-प्रभा सम तेजशील, आचरण यस्‍य विधु किरणों सम
मन में तथापि न  तनिक अहं, फिर उनको गम की बात ही क्‍या ।।2।।

चहु दिशि हो जिनकी कीर्ति विमल, सत्‍कार्य सर्वदा हो कर पर
जिनका चरित्र शीतल जल सा, हो वाणी संयत और मधुर ।।
वो महापुरूष होते हैं जिनको जग करता सर्वदा नमन
ऐसे मानव की गहे शरण, फिर उनको गम की बात ही क्‍या ।।3।।


आनन्‍द फैजाबादी

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