कहने की जरूरत नहीं है कि अपनी इस रचना में मैं क्‍या कहना चाहता हूं। पढकर आप सब खुद ही समझ जाएंगे।
जिनको इस गजल से कुछ एहसास जगें या फिर कोई पुरानी बात या पुराने हसीन दिन याद आ जाएं वो टिप्‍पणी जरूर लिखेंगे
इसी में मेरी इस गजल की सार्थकता है।।
               आपका-आनन्‍द

आज फिर अपना बना लेते तो अच्‍छा होता । 
गुनाह मेरे भुला देते तो अच्‍छा होता ।।

अपने नाजुक लबों से एक बार फिर मेरा
तडपकर नाम बुला देते तो अच्‍छा होता ।।

कहीं हम छूट न जाएं, बडा लम्‍बा है सफर
तुम अपना हाथ थमा देते तो अच्‍छा होता ।।

कैसे भूलें भला हम तुमको एक पल को भी
तरीका तुम ही बता देते, तो अच्‍छा होता ।।

आज फिर एक बार मेरे बीमारे दिल पर
थोडी सी दवा लगा देते तो अच्‍छा होता ।।

सजा तुमसे जुदाई का मिले इससे बेहतर
जहर हांथो से पिला देते तो अच्‍छा होता ।।

कहीं ऐसा नहो, हो जाएं दूर हम तुमसे
अपने दामन में छुपा लेते तो अच्‍छा होता ।।

टूटकर हम बिखर जाएं तुम्‍हारी बाहों में
अपने दिल में पनाह देते तो अच्‍छा होता ।।

--
ANAND

6 تعليقات

  1. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

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  2. बहुत सुन्दर गजल है।बधाई।

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  3. टूटकर हम बिखर जाएं तुम्‍हारी बाहों में
    अपने दिल में पनाह देते तो अच्‍छा होता

    सुंदर रचना............पढ़ कर कुछ एहसास भी जगे कुछ पुरानी बातें भी याद आगयीं।

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  4. bahut khub

    shekhar kumawta

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  5. bahut achhi gazal sir...
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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