आज ही नहीं अपतु हर सामाजिक परिवेश में कुछ ना कुछ ऐसे कुंठित भावनाओं से ग्रस्त लोग होते ही है जो अपनी वासनाओं या कमियों की पुष्टि के लिए सनातन धर्म तथा हिन्दू देवों द्वारा किये गए कार्यों का उल्लेख करने से नहीं चूकते हैं !!

इनकी कुछ वासनाएं पूरी हो जाएं और समाज इन्हें दोषी ना कह पाए इसलिए ये देवताओं के चरित्र तथा उनके किये कार्यों का बड़ी ही सहजता से उद्धरण दे देते हैं , और इन्हें इसका पश्चाताप तो क्या होगा उलटे इसमें इनका मानस प्रफुल्लित होता है !

आज कल ब्लॉग जगत पर भी ऐसे ही कुछ अवसाद से ग्रस्त लोगों के लेख आने लगे हैं!
कुछ दिन तक तो उनके blogs पर नम्र टिप्पड़ियां कर के उन्हें समझाता रहा पर इसे उन्होंने कमजोरी मानते हुए हिन्दू धर्म पर कुठाराघात और भी तेज कर दिया !
मै उनका नाम यहाँ उल्लिखित नहीं कर रहा हूँ पर अगर वो ये लेख पढेंगे तो अवश्य ही कुंठित होंगे और भगवत प्रेमी जन इस लेख से हर्षित होंगे इसी आशा के साथ इस लेख का प्रकाशन कर रहा हूँ !! आप सब की टिप्पड़ियों से ही मेरे परिश्रम के फल का  पता चल जाएगा !!


हालांकि हम जिन पुस्तकों को पढ़ते है उनमे से कुछ पर  कभी कभार श्रद्धा नहीं भी जग पाती, फिर भी हर पाठक का ये कर्तब्य होता है कि या तो वो पठित पुस्तक की कोई भी बात ना माने या फिर उसकी हर बात सही समझे, कहने का तात्पर्य ये है की हम जिस भी ग्रन्थ को पढ़ें उसमे लिखी हुई सारी बातों पर हमारी भावनाएं एक जैसी ही होनी चाहियें !
आप सोच रहे होंगे कि मै इन सब बातों का उल्लेख क्यूँ कर रहा हूँ, भला इन सब बातों का इस लेख में क्या काम हो सकता है !
बताने की जरूरत नहीं है , लेख पढने के क्रम में ये बात स्वतः ही समझ में आ जाएगी !


अब मै उन तर्कों का उल्लेख कर रहा हूँ जिसे प्रायः लोग अपने कुकर्मों को सही ठहराने हेतु प्रयोग करते हैं
१- भगवान् शंकर  भी तो भांग का नशा करते थे (नशे के लिए मादक पदार्थों का सेवन करने वाले कुतर्कियों का कथन )
२-वेदों में लिखा है की देवता भी तो शराब पीते हैं (मदिरा सेवन करने वालों का कथन )
३-राम ने भी शम्बूक का वध कर के शूद्रों के प्रति अन्याय किया था
४-कृष्ण ने १६००० रानियाँ रखी थीं तो हम २-४ क्यूँ नहीं रख  सकते
५-इंद्र गायों को मारता था 
६-कृष्ण ने गोपियों के साथ बचपन में ही रास किया अर्थात चरित्रहीन थे
७-पराशर ने विवाह के पूर्व ही सत्यवती के साथ सम्बन्ध बनाए थे
८-व्यास ने महाभारत की मनगढ़ंत रचना की , महाभारत जैसा कोई युद्ध हुआ ही नहीं था
९-देवताओं ने हमेशा छल ही किया था
१०-वेदों की नीतियाँ गलत हैं !


ये कुछ ऐसे तथ्य हैं जो हर कुतर्की बड़ी सरलता से कह जाते हैं और अन्य लोग उनके आगे बेचारे बन जाते हैं
इन सब का क्रमशः तर्क पूर्ण उत्तर प्रस्तुत कर रहा हूँ ! पाठकों से अनुरोध है की हर कुतर्की को उचित उत्तर देने से बिलकुल भी ना चूकें
१-भगवान् शंकर भांग का नशा करते थे इस बात को कहने वाले ये भूल जाते हैं की भगवान् शंकर महादेव हैं और उनकी बराबरी मनुष्य नहीं ही कर सकता है, अब आप कहेंगे की लो जी ये कौन सा तर्क है तो वस्तुतः ये तो एक सुझाव है उन कुतर्कियों के लिए और उनके इस प्रश्न का उत्तर ये है की श्रृष्टि को बचाने के लिए जाने कितने टन विष पी लिया था तो अगर उनकी इस बात में बराबरी करते हैं की वो भांग खाते हैं तो हम भी क्यूँ ना खाएं तो भाई वो तो विष पी गए थे और वो भी कई टन आप केवल १०० ग्राम सल्फास खाकर देख लो , जिन्दा बचे तो फिर जीवन भर शंकर जी के बाप बने घूमना, कोई कुछ ना बोलेगा! 

२-देवता सोम पान किया करते थे जो शराब नहीं होती. शराब को सुरा कहा गया है जो दैत्यों का पेय था ! सोम एक वनस्पति है जिसके ताजे रस को निचोड़ कर देवता पान करते थे जिससे उनकी शक्ति में वृद्धि होती थी, आप भी वनस्पतियों और फलों का ताजा रस पीते हों तो कोई कटाक्ष नहीं ही करता होगा !

३- शम्बूक को मारना आवश्यक था, कारण जानने के लिए इस लेख के ठीक पहले वाला लेख पढ़िए , वहां मैंने इसकी विस्तृत चर्चा की है, और शम्बूक को मार कर राम शूद्र द्रोही कैसे हो गए जबकि उन्होंने शबरी के जूठे बेर खाए थे, जानकार लोग शबरी की जाति तो जानते ही होंगे, अब यहाँ एक तर्क ये भी हो सकता है की हो सकता है वो भूखे रहे हों, तो थोडा सा दिमाग लगाइए की २-४ बेरों को खाकर किसका पेट भरा जा सकता है, और खाना होता तो जंगल में फलों की कमी नहीं थी की शबरी के बेर खाने पड़ते, ये तो उनका प्रेम और मानवता की भावना और शबरी की भक्ति का परिणाम था की उन्होंने अपने राजकुमार होने का भी गर्व नहीं किया !


४-कृष्ण १६००० रानियों के साथ प्रतिदिन एक ही समय पर होते थे , आप एक ही समय पर केवल दो लोग को समय देकर देख लो , उनके एक चावल मात्र खा लेने से सारी श्रृष्टि का पेट भर जाता था आप एक इंसान का इसी विधि से पेट भर कर देखिये!


५-यह भ्रम इंद्र के गोहंता नाम के कारण लोगों को हो ही जाता है पर ये इसलिए की उन्हें गो का एक ही अर्थ पता होता है , जरा गो के अन्य अर्थ भी जान लें........ गो - इन्द्रिय, सागर की लहरें, बादल, सूर्य या चन्द्र की रश्मि, आकाश से गिरती हुई बूँद !
इंद्र वर्षा का देवता है और वेदों में मान्यता है की जब बारिश नहीं होती है तो इंद्र मेघों को चीर कर वर्षा कराते हैं इसी कारण उन्हें गोहंता कहा गया है 
अब इंद्र को गाय का वध करने वाला कहने वालों का मुह  जरूर बंद हो जाना चाहिए !


६-कृष्ण ने बचपन में ही कालिया दहन किया था, पूतना का वध, काकासुर, बकासुर, केशी, आदि को तो मारा ही था इससे भी बढ़कर जो है वो ये की इसी बचपन में उन्होंने १६ योजन लम्बे चौड़े गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्टा ऊँगली पर ७ दिन और ७ रातों तक अनवरत  उठा रखा  था, अब जो कृष्ण की बराबरी करना चाहता हो, वो केवल  ५०  किलो का एक पत्थर २० मिनट तक ही कनिष्टा ऊँगली  से नहीं बल्कि एक पूरे हाथ से उठा कर देख लें , जिन्दगी में फिर कभी ये बात करने का साहस नहीं होगा !


७-पराशर ने सत्यवती का स्पर्श तक नहीं किया था अपितु दृष्टिपात मात्र से सत्यवती को गर्भ दिया था, और उन्होंने सत्यवती के कौमार्य को भी नष्ट नहीं होने दिया था, दूसरी बात , पराशर को पूरा वेद कंठस्त था इतना ही नहीं पूरी वेद परंपरा के दर्शन में उनका भी योगदान था, कुतर्की जन जरा एक वेद कंठस्त कर के देखें और फिर तभी  तर्क करने के अधिकारी होंगे !


८- किसी अंग्रेज विद्वान् के ही कथन हैं की यदि महाभारत का युद्ध सच में हुआ था तो ऐसा गृह कलह और युद्ध ना कभी हुआ ना ही भविष्य में ही  होगा !
और यदि यह कवि की कल्पना मात्र है तो इतनी बड़ी कल्पना ना कभी किसी ने की होगी और ना ही भविष्य में भी कोई कर पाएगा. ! अर्थात वह रचनाकार अद्वितीय व्यक्तित्व तथा अभूतपूर्व मष्तिस्क का था ! अब अगर एक अंग्रेज ये बात कहता है तो भारतीय होकर भी अगर अपने ग्रंथों का कोई  अपमान करता  है तो वस्तुतः वो व्यक्ति दोगला ही कहा जाएगा !


९-शठे शाठ्यम समाचरेत - या कहें जैसा को तैसा वाली नीति तो सुनी होगी ! यही इसका उत्तर है !


१०-जो व्यक्ति ये बात कहता है उससे बस एक बात पूछना चाहूँगा , क्या वह पूरी तरह से किसी  भी एक भाषा का पूरा पूरा  ज्ञान रखता है , मेरा मतलब है की क्या कोई दावे के साथ ये कह सकता है की अमुक भाषा के सारे के सारे शब्द मुझे अक्षरशः कंठस्त है ! अब जो व्यक्ति ठीक से अपनी मातृभाषा का पूरा ज्ञान नहीं रखता है वो वेदों की गूढ़ भाषा को क्या समझेगा ! और वेदों का वेदत्व तो पिछले हजारों सालों के प्रयत्न के बाद  भी नष्ट नहीं हुआ, तो मुठ्ठी भर बेहूदों की बेहूदगी  से क्या हो पाएगा ! ये केवल जंगल में रोने के समान ही व्यर्थ साबित होगा !


उपरोक्त बातों में कुतर्की एक तर्क ये भी लगा सकता है की ग्रन्थ में पर्वत उठाना , जहर पीना , आदि सब बातें गलत लिखी हैं तो इसके लिए हमने पहले ही कह दिया है की या तो किसी ग्रन्थ की सारी बातें सच मानी जाएं या फिर एक भी नहीं ! यहाँ भी आप कहेंगे की मियां तो इस तरह तो वेदों को भी लोग गलत मान लेंगे, इसका भी निदान है, वेदों में लिखी हुई कई बातें वैज्ञानिकों ने सत्य प्रमाणित की हैं , अब जब कुछ बातें सत्य मान ली गई हैं वो भी वैज्ञानिकों के द्वारा तो फिर क्षत्रि न्याय से सम्पूर्ण वेद सही साबित होते हैं !


इस तरह से ऊपर दिए हुए तथ्यों का प्रयोग कर के हम उन समस्त कुतर्कियों का मुह तोड़ सकते हैं !
आप सब से एक अनुरोध है , यदि कोई ऐसी बात आपको भी समझ नहीं आ रही है जिसकी  कि किसी कुतर्की द्वारा गलत रूप में व्याख्या  दी गई हो तो उन शंकाओं को आप हमें लिख कर दे दें..! हम आपकी उन समस्याओं का यथासंभव समाधान करेंगे! अपनी समस्याएँ हमें हमारी ईमेल आइ डी पर ही भेजें !!


हिन्दू धर्म की सुरक्षा हेतु  आपके सहयोग के लिए धन्यबाद!!

8 टिप्पणियाँ

  1. मानव अपनी सुविधा के लिए कुच्छ भी कर लेता है । ऐसा माना जाता है कि " भुवन भंग व्यसनं " कुछ लोगों ने इसमें से केवल भुवन शब्द हटा दिया और पूरी तरह इसका अर्थ बदलते हुए होली के दिन भांग पीने का धार्मिक लाइसेंस भी ले लिया ।


    see this link :


    http://my2010ideas.blogspot.com/2010/03/blog-post_13.html

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  2. aapke har tark se sehmat hun....par aajkal to logo ko chodiye jab supreme court keh deti hai ki Krishna Radha live in relationship me the to aur kya kahein...hamein kabhi hamara dharm theek se nahi padhaya gaya...yahi sabse badi galti ho gayi...

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  3. आनंद भाई ऐसा करने वाले तो स्वम अपने धर्म को श्रेष्ठ साबित करने की इच्छा से पराजित हैं वे दूसरों को क्या पराजित करेंगे वो भूल गए हैं की विश्व को शून्य का ज्ञान भारत ने ही दिया जिसपर आज तक का मानव विकास और वैज्ञानिक आविष्कार टिकें हैं जय भारत जय वेद

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  4. बहुत ही अच्छी पोस्ट है आप का बहुत बहुत धन्यवाद

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  5. कैरानवी तो सा---------ला हराम औलाद है. फौजिया शर्मा के नाम पर "इस्लाम" का प्रचार कर रहा है. इन लोगों का मजहब इतना गंदा है- हर महिला को नंगा करते फिरते हैं. सर्वप्रथम अपनी मां को ... हुए पैदा होते हैं, बड़े होकर बहन की इज्जत उतारते है, बेटी पैदा होती है तो सोचते हैं कब बड़ी हो और कब ये उसके साथ भी मुंह काला करें. जमाल, असलम, सलीम अयाज, सहाफत, इदरीसी, जीशान सब हराम की औलाद हैं, इनको अपने बाप के नाम का तो पता नहीं, दूसरों को भाषण देते फिरते हैं.

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  6. जब इन लोगों को देवी-देवता को अपमानित करने में शर्म नही आती तो आपको इन हरामियों का नाम लेने में क्यों आती है?

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  7. बहुत बढ़िया लेख है आनंद भाईजी. यही तो सबसे बड़ी कमजोरी हमारी आज सिर्फ और सिर्फ भौतिकता के उन्माद में हमारी परम्पराएँ और ज्ञान पीछे छूट रहा है और हाथ आ रहा है तो सिर्फ भ्रम, जो की हमारी कमी है. ना की धर्म ग्रंथों की या रिवाजों की जब उन्हें समझ पाने की बुद्धि ही हम में विकसित ना हो पाई तो अपनी निम्न बुद्धि से हमें ऊल-जुलूल ही मतलब निकालेंगे .
    बहुत धन्यवाद आपका इस लेख के लिए

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