अरसों के बाद मन की आज पोटली खुली
तब लेखनी चली, तब लेखनी चली ।।
भरसक प्रयास पर भी जब रसना नहीं हिली
तब लेखनी चली, तब लेखनी चली ।।
1- हर ओर अत्याचार है , हर हाँथ में तलवार है
नीरस हुआ संसार है, अब लुप्तप्राय प्यार है
जब प्रेम की सरिता ने अपनी धार रोक ली
तब लेखनी चली, तब लेखनी चली ।।
2- सारा समाज सुप्त है, आचार अब उन्मुक्त है
विधि का विधान गुप्त है, हर मन से आनन्द लुप्त है
अपनों ने जब अपनों की खुशी खुद ही छीन ली
तब लेखनी चली, तब लेखनी चली ।।
3- ये युग है भ्रष्टाचार का, भूदेव के चीत्कार का
नेताओं के विस्तार का, बेजान सी सरकार का
महलों तले जब झोपडी ने अन्तिम साँस ली
तब लेखनी चली, तब लेखनी चली ।।
4- भारत न भा मे रत है, इसकी हुई दुर्गत है
आनन्द भी उन्मत है, पश्चिम में ही बरकत है
दूषित है धवल मन अरे कैसी हवा चली
तब लेखनी चली, तब लेखनी चली ।।
5- यह वर्तमान की दशा, कीचड कमल में आ बसा
भारत की है ये दुर्दशा, गजराज ज्यूँ दलदल धँसा
गहि चक्र धाओ श्याम अब त्यागो मधुर मुरली
तब लेखनी चली, तब लेखनी चली ।।
वर्तमान दशा पर कुठाराघात करता हुआ कवि श्रीविवेकानन्द पाण्डेय 'आनन्द फैजाबादी' कृत यह काव्य सादर समर्पित ।
maza aagay kasam se ,kya lekhni hai kai baar pad chuka hu,fir bhi man kerta hai aur padu
ردحذفaise hi acchi kavitaye post karte rahiye
maza aagay kasam se ,kya lekhni hai kai baar pad chuka hu,fir bhi man kerta hai aur padu
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