मैने ये गजल उस समय लिखी थी जब कि मैं बडे ही मानसिक दुविधा में रहा करता था।
कदाचित ये बताने की आवश्‍यकता नही है कि वह मानसिक परेशानी कौन सी बात पर थी।
हां सो मैने भी अपने दिल के गुबार कागज पर उडेल दिये और वह जहर ही इस गजल के रूप में प्रकट हो गर्इ।
टिप्‍पणियां दीजियेगा कि मै समझ सकूं कि ये गजल कैसी है।
            आपका - आनन्‍द

ये गजल नहीं हैं मेरे आंसू हैं
दर्दे दिल की मेरे आवाज है ।।

मेरी बरबादियों के मंजर का
बडा अजीब सा आगाज है ।।

बिगड जाती है बात सब अपनी
अपना कुछ अलग ही अंदाज है ।।

गुबार कितना भरा है दिल में
न पूंछिये, ये गहरा राज है ।।

छोड दो आज हमें तनहा ऐ दोस्‍त !
आज तबियत बडी नाशाद है ।।

तोड देता है दिल बेदर्दी से
बडा जालिम मेरा हमराज है ।।

खुश है अब दूर होके वो हमसे
उसकी दुनिया बडी आबाद है ।।

मोहब्‍बत की गजल है ताजमहल
हम मगर आंसूओं के ताज हैं ।।

--
ANAND

8 टिप्पणियाँ

  1. wow !!!!!!!!
    मोहब्‍बत की गजल है ताजमहल
    हम मगर आंसूओं के ताज हैं ।।
    bahut khub


    shkehar kumawat

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  2. "तोड देता है दिल बेदर्दी से


    बडा जालिम मेरा हमराज है ।।

    मोहब्‍बत की गजल है ताजमहल


    हम मगर आंसूओं के ताज हैं ।।"

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति!शुभकामनाये स्वीकार करें.....

    कुंवर जी,

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  3. भावनाएं अच्छी हैं ... पर कहीं कहीं पर काफिया टूटा है ... ये शेर अच्छा है ...

    गुबार कितना भरा है दिल में
    न पूंछिये, ये गहरा राज है ।।

    जवाब देंहटाएं
  4. Har lamha hum marte hain fir jee utthte hain....

    Nar ho na niraash karo mann ko...

    जवाब देंहटाएं

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