हर गजल की तरह ही मेरी यह गजल भी उसी एक शक्स को समर्पित है जिसके लिये मैने ये गजल लिखी थी ।
आज भी वो मेरे साथ है पर फिर भी मेरे साथ नहीं है । डरता हूं मैं उसको खो देने से पर यह भी सच है कि मैं कभी उसे पा भी तो नहीं सका । खैर मेरी कहानी तो छोडिये, आप तो बस ये गजल पढिये और बताइये कैसी लगी आपको ।
जाने फिर क्यूं आप पर मरने लगा हूं मैं
अपने ख्वाबों रंग फिर भरने लगा हूं मैं ।।
फिर हंसी लगने लगे बागान के हर गुल
हर कली से इश्क फिर करने लगा हूं मैं ।।
रोज उनको याद कर जी लेता हूं सदियां
और हर इक पल में फिर मरने लगा हूं मैं ।।
ऐ गमे तनहाई मेरे पास न आओ
अब के फिर से दर्द से डरने लगा हूं मैं ।।
देखता हूं यार की सूरत पयालों में
मैकदे में ही बसर करने लगा हूं मैं ।।
बन गया मेरा खुदा वो आज मेरा दोस्त
अब इबादत उसकी ही करने लगा हूं मैं ।।
ऐ के शायद जग गया फिर से गमे ''आनन्द''
महफिलों मे फिर गजल पढने लगा हूं मैं ।।
dil kee gehraai se likhee baat lagtee hai ,
जवाब देंहटाएंchot bhee gambheer lagti hai
dil se pyar karo lagaataar ...
sab milega, ... pyar me badi shakti hai
bahut acchhi gazel.badhayi.
जवाब देंहटाएंफिर हंसी लगने लगे बागान के हर गुल
जवाब देंहटाएंहर कली से इश्क फिर करने लगा हूं मैं ।।
Bahut khoob!
Bahut hee umda v lajwab lagi aapki ye rachna
जवाब देंहटाएंबन गया मेरा खुदा वो आज मेरा दोस्त
जवाब देंहटाएंअब इबादत उसकी ही करने लगा हूं मैं ।।
.............सुंदर रचना.
tmhara koi jabab nahi tum lajbab ho tum bagiche k sabse sundar phool ho phool hi nahi phoolo k raja gulab ho
जवाब देंहटाएंआप सब का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुनील जी इतनी प्रशंसा के लिये आभारी हूँ
kya bat hai
जवाब देंहटाएंbahut khub janab
jam gye ho mahfilo mai tm to,
ab kya koi tmhara samna karega|
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