सनातन धर्म का प्राणस्वरूप, विश्व का महानतम, आदि ग्रन्थ वेद केवल सनातन हिन्दू धर्म का ही नहीं अपितु विश्व के सम्पूर्ण धर्मों का मूल है । ''वेदोखिलो धर्ममूलम्'' अर्थात् वेदो से ही सम्पूर्ण धर्मों की उत्पत्ति हुई है । इस विषय पर श्रद्धा रखने वाले जानकार लोग इस बात को विधिवत जानते व मानते हैं पर जिन बन्धुओं की जिज्ञासा होगी कि वेदों से ही सम्पूर्ण धर्मों की उत्पत्ति कैसे हुई, वे मुझे ईमेल से सूचित करें, मैं उनकी शंकाओं का समाधान मैं अपने अगले लेख में प्रकाशित कर दूंगा ।
आज के इस लेख में वेदों, खासकर ऋगवेद के विषय में कुछ महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्यों का उद्घाटन करने जा रहा हूं । ये विषय हर उस व्यक्ति को जानने चाहिये जो धर्म के विषय में जानना चाहता है , कहा भी है- ''धर्मजिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुति:'' अर्थात् धर्म के जिज्ञासुओं के लिये वेद परम प्रमाण है।
वास्तविकता में वेदों की उत्पत्ति तभी हो गई थी जब कि इस श्रृष्टि की उत्पत्ति हुई । किन्तु पाश्चात्य दुराग्रहियों के द्वारा उद्धृत भ्रामक तथ्यों के आधार पर ही आज भी विद्वद समाज वेदों को केवल कुछ हजार वर्ष प्राचीन मानता है । किन्तु इसका निर्धारण करते समय वे भूल जाते हैं कि वेदों की परम्परा का भी वर्णन प्राप्त है जिसके अनुसार ईश्वर से ब्रह्मा, ब्रह्मा से वशिष्ठ, वशिष्ठ से शक्ति तथा इसी क्रम में पराशर तथा कृष्ण द्वैपायन को वेदों का परम ज्ञान हस्तान्तरित हुआ । वेदों का आगे विस्तार द्वैपायन तथा इनके शिष्यों ने किया जिसके कारण ही इनका नाम वेदव्यास प्रचलित हुआ ।
वेदों मे सर्वप्राचीन ऋग्वेद है , ऐसा उद्धरण भी प्राप्त है कि सर्वप्रथम केवल एक ही वेद था ऋग्वेद । पठन-पाठन मे सारल्य हेतु वेदव्यास ने इसे चार भागों में विभक्त किया । यहां ऋग्वेद के संदर्भ में कुछ रोचक व महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन संक्षेप में कर रहा हूं । सुधीजन अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ।
- महाभाष्य (पश्पसाह्निक) के अनुसार ऋग्वेद की 21 शाखाएं थी जिनमें चरणव्यूह ग्रन्थ के अनुशार 5 शाखाएं (शाकल, बाश्कल, आश्वलायन, शांखायन, माण्डूकायन) प्रमुख हैं । जिनमें इस समय केवल शाकल शाखा ही प्राप्त है ।
- ऋग्वेद (शाकल शाखा) का विभाजन द्विधा है - 1-अष्टक क्रम 2- मण्डल क्रम ।
- अष्टक क्रम में आठ अष्टक, प्रत्येक अष्टक में आठ-2 अध्याय, प्रत्येक अध्याय में कुछ वर्ग तथा प्रत्येक वर्ग में कुछ ऋचाएं होती हैं । इन ऋचाओं की औसत संख्या 5 है, पर 1 से 9 तक ऋचाएं भी प्राप्त होती हैं। इस प्रकार कुल 2006 वर्ग तथा 10417 ऋचाएं हैं। किन्तु शौनकाचार्य की अनुक्रमणी के अनुसार ऋचाओं की कुल संख्या 10580-1/4 है।
- मण्डल क्रम अधिक प्रचलित है, इस विभाजन में ऋग्वेद 10 मण्डलों में विभक्त है । प्रत्येक मण्डल में विभिन्न अनुवाक, प्रत्येक अनुवाक में कुछ सूक्त तथा प्रत्येक सूक्त में कुछ ऋचाएं होती हैं । इस तरह से कुल 1028 सूक्त हैा जिनमें 11 खिल सूक्त हैं।
- प्रथम मण्डल के द्रष्टा ऋषि शतार्चिन कहे गये ।
- 2 से 8 मण्डल पर्यन्त वंशमण्डल संज्ञा से अभिहित हैं ।
- नवम मण्डल को सोम या पवमान मण्डल कहा गया है । इस मण्डल के सभी सूक्त सोम को समर्पित हैं ।
- दशम मण्डल के नासदीय सूक्त पर्यन्त सभी सूक्त महासूक्त तथा इसके पश्चात के क्षुद्र सूक्त कहे गये हैं । इसी प्रकार इनके द्रष्टा भी इन्ही नामों से अभिहित हैं ।
- ऋग्वेद का प्रधान देव इन्द्र है । इनकी 250 सूक्तों में पृथक रूप से तथा अन्य सूक्तों में आंशिक रूप से अर्चना की गयी है ।
- ऋग्वेद के प्रत्येक मण्डल का प्रथम सूक्त अग्नि को समर्पित है । अग्नि ऋग्वेद का द्वितीय प्रधान देव है तथा इनकी वन्दना 200 सम्पूर्ण तथा कुछ अन्य सूक्तों में आंशिक रूप से की गयी है ।
- ऋग्वेद की रक्षा तथा इसमें बाद में कोई परिवर्तन न हो सके अत: इसके सम्पूर्ण सूक्तों की शब्द संख्या की भी गणना कर ली गयी थी,अनुक्रमणी में यह संख्या 153826 है ।
- ऋग्वेद के शब्दों की ही नहीं अपितु एक-एक अक्षर तक की गणना कर ली गयी थी, अनुक्रमणी में इसकी संख्या 432000 है ।
- ऋग्वेद का प्रथम अध्यापन वेदव्यास ने अपने शिष्य पैल के सम्मुख किया था ।
- ऋग्वेद के दशवें मण्डल के द्रष्टा ऋषि ही उनके देवता भी हैं ।
- मन्त्रों के दर्शन में महिलाओं का भी योगदान रहा था जिनमें अगस्त्य मुनि की पत्नी लोपामुद्रा तथा महर्षि अम्भृण की पुत्री वाक् विशेष उल्लेखनीय हैं ।
इस तरह से ऋग्वेद के विषय में यहां कुछ अत्यन्त रोचक किन्तु गूढ बातों का उल्लेख किया गया है । ये सारे तथ्य वेद के सम्भ्रान्त ब्याख्याकारों की पुस्तकों से संकलित हैं । इन पर आप सभी सुधी पाठकों के विचार एवं राय आमंत्रित है । ऋग्वेद के ही विषय में अन्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का उद्घाटन इस लेख के अगले अंक में किया जायेगा । यदि आपको वेद के विषय में कुछ अन्य गूढ बातों की जानकारी है तो हमें अवश्य बताएं, हम अपने अगले लेख में उन तथ्यों का उद्घाटन आप के नाम के साथ करेंगे ।
।। वेद भगवान की जय । भारतीय संस्कृति की जय ।।
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