आज सुबह-सुबह मेरे मस्तिष्‍क में चंद पंक्तियाँ उठीं और मैनें उन्‍हे काव्‍य का रूप दे दिया । 
अब निर्णय आप पर है, काव्‍य के भावों आंकलन करके अपने विचार प्रकट कीजिये । 

अपना तन प्राण धन सब‍कुछ निसार करता है ।
इतना ये ''आनन्‍द'' इस भारत से प्‍यार करता है ।।

चोर जितनी कंचन की, कामिनी आभूषण की
भक्‍त ज्‍यूँ कीर्तन की चाहत बेशुमार करता है 
इतना ही ''आनन्‍द'' इस भारत से प्‍यार करता है ।।

गाय जितन बछडे का, सूकरी ज्‍यूँ कचडे का
ज्‍यूँ पिचाली पचडे पर इख्तियार करता है
बस यूँ ही ''आनन्‍द'' इस भारत से प्‍यार करता है ।।

वेदपाठी संहिता पर, पुत्र जैसे निज पिता पर
श्रेष्‍ठ कवि निज काव्‍य पर ज्‍यूँ ऐतबार करता है
ऐसे ही ''आनन्‍द'' इस भारत से प्यार करता है ।।

नौजवान भय तजकर चढ चले जब शत्रु उपर
और उनके खून से अपना श्रृंगार करता है 
हाँ यूँ ही ''आनन्‍द'' इस भारत से प्यार करता है ।।

देश को खुशहाल करने, लो चला ''आनन्‍द'' मरने
कौन आता संग मेरे यह पुकार करता है 
इस तरह ''आनन्‍द'' बस भारत से प्‍यार करता है ।।

जय हिन्द


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