हम कोटि जतन कर लें, दु:खों से मुक्‍त न हो पाएँगे ।
जब चाहेंगे श्रीराम सकल जगजाल छूट जाऍंगे ।।

है कौन कि जिसने चाहा, उस पर पडे आपदा भारी
हर क्षण सुख सुविधाओं की कामना करता हर संसारी
लेकिन बबूल के वृक्ष कभी न आम सरस आएँगे
जब चाहेंगे श्रीराम सकल जगजाल छूट जाऍंगे ।। 

आलम्‍बन यदि कमजोर, निरा श्रम से क्‍या हो सकता है
जितना जागतिक प्रसार, हृदय उतना ही खो सकता है
जागेगी अन्‍तर्ज्‍योति, विषय से जब हम उकतायेंगे
जब चाहेंगे श्रीराम सकल जगजाल छूट जाऍंगे ।। 

नरसी गरीब के कीर्तन पर घनश्‍याम बरसते देखा
राजाधिराज को भी बस इक सुत हेतु तरसते देखा
जिनमें विषाद के नीर, मेघ सुख कैसे बरसायेंगे
जब चाहेंगे श्रीराम सकल जगजाल छूट जाऍंगे ।।

शुभ कर्मो से शबरी, भुशुण्डि युग-युग पूजे जायेंगे
दसकण्‍ठ, कंस, दुर्योधन हर युग में थूके जायेंगे
हैं 'आर्त' तदपि हम मुदित निरन्‍तर भक्ति गीत गायेंगे ।।
जब चाहेंगे श्रीराम सकल जगजाल छूट जाऍंगे ।।
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कवि 'आर्त' कृत नीराजन भजन संग्रह से साभार स्‍वीकृत ।।

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