अर्ज़ है --

जनता ने जिनको दिया था कभी अधिकार
वे ही जनता के ठेकेदार बने बैठे हैं ।
जिनसे था डर किस्ती के डूब जाने का
वही किस्ती के पतवार बने बैठे हैं ।
जिसने न छोड़ा भैंस-गाय का चारा "आनन्द"
आज वो हमारे वफादार बने बैठे हैं ।
जितने भी थे डकैत चोर राजनीती में वे
सब आज एक परिवार बने बैठे हैं ।।

डॉ. विवेकानन्द पाण्डेय "आनन्द"
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